ई न्यूज पंजाब, लुधियाना। लुधियाना वेस्ट हलके के उपचुनाव 19 जून को होने जा रहे हैं। लेकिन चुनाव से पहले ही कांग्रेस के बड़े लीडरों द्वारा पार्टी को अलविदा कहकर आम आदमी पार्टी में शामिल होने से चुनावी समीकरण भी बड़ी तेजी से बदलते दिखाई दे रहे हैं। इसी के तहत तीन बार विधायक और मंत्री रहे स्वर्गीय सरदारी लाल कपूर के पोते व कांग्रेस के सीनियर नेता सुनील कपूर ने भी एक दिन पहले ही पार्टी को छोड़ दिया है। लंबे समय से पुराने कांग्रेसी घरों में से एक सिम्मी चोपड़ा पाशान के आम आदमी पार्टी में जाने के बाद अब सुनील कपूर के झटके ने सबको हैरत में डाल दिया है। लेकिन सीनियर लीडरों द्वारा कांग्रेस का दामन छोड़ने के कारण कही न कही कांग्रेसी उम्मीदवार भारत भूषण आशु के चुनावी समीकरणों पर बड़ा इंपैक्ट डाल सकती है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कही न कही इन नेताओं के पार्टी छोड़ने के पीछे भी आशु को कारण माना जा रहा है। ऐसे में अगर आशु अभी भी अपनी मर्जी व अपने असुलों पर चलते हैं तो उन्हें चुनावों में इसका भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। क्योंकि आज तक आशु अपने असुलों पर चले हैं। ऐसे में अगर उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ता है तो इससे विधानसभा हलका वेस्ट के साथ साथ कांग्रेस पार्टी में भी उनका कद छोटा हो जाएगा।
कई बड़े राजनीतिक परिवारों को किया गया साइड़ लाइन
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर आशु का पिछले 15 साल की राजनीतिक करियर देखा जाए तो मंत्री रहे सीनियर लीडर हरनाम दास जौहर के परिवार को भी राजनीतिक से एकदम साइड़ कर दिया गया। कहा जाता है कि हरनाम दास जौहर के बेटे अज' जौहर की राजनीति भी 2-3 साल तक चली, लेकिन आगे नहीं बढ़ सके, क्योंकि उस समय आशु मजबूत हो रहे थे। वहीं तीन बार विधायक और मंत्री रहे सरदारी लाल कपूर के परिवार को कांग्रेस पार्टी में पहले जैसा रुतबा नहीं मिल सका। ऐसा ही एक अहम चेहरा राशि अग्रवाल का भी है, जो पहले से आशू टीम से अलग हो कर भाजपा में शामिल हो गई। वहीं उनके ससुर हेमराज अग्रवाल जिनकी कांग्रेस में बड़ी पैठ थी और सबसे सीनियर कौंसलर की फेहरिस्त में वे सबसे आगे थे, लेकिन वे भी कहीं न कहीं आशू की राजनीति का शिकार हो कर रह गए। इतना हीं नहीं दिवंगत आप विधायक गुरप्रीत गोगी ने भी आशू के चलते ही कांग्रेस को बॉय बॉय कह आप में ज्वाइनिंग दी थी और वे पिछले विधानसभा चुनाव में आशू को पटकनी देने में भी कामयाब रहे थे। अब भी लुधियाना पश्चिमी में कई ऐसे सीनियर कौंसलर हैं, जो मन ही मन ये जरुर सोचते हैं कि आखिर कब तक कौंसलर चुनाव ही लड़ते रहेंगे और अब पार्टी उन्हेंं आगे बढ़ने का मौका देगी। साल 2022 में आशु की हार के मंथन में ये बात निकल कर सामने आई कि उनकी मनमर्जी वाला रवैया, गुस्से वाले स्वभाव के कारण बना। जिसके बाद आप सरकार आने के बाद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और जेल भी जाना पड़ा।
डेढ़ साल जेल में रहने के कारण ग्राफ आया नीचे
वहीं आशु पर मामला दर्ज होने के बाद उन्हें करीब डेढ़ साल से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा। जिस कारण उनका राजनीतिक ग्राफ काफी नीचे आ गया। पूरे पंजाब में आशु के विधानसभा हलके में सबसे ज्यादा पार्षद उनके ही बनते थे। लेकिन यह पहली बार है कि हलका वेस्ट में उनकी पत्नी ममता आशु व उनके भाई नरिंदर शर्मा काला तक निगम चुनाव नहीं जीत पाए। जिसके चलते आशु का गढ़ हिलता हुआ नजर आ रहा है। जिसे देख लगता है कि कही न कही लोगों में आशु की पैठ कम होती नजर आ रही है। आशू की ओर से इस चुनाव में पंजाब सरकार की ओर से दर्ज भ्रष्टाचार के केसों में माननीय हाईकोर्ट से बरी होने का बड़ा मुददा पब्लिक के समक्ष जरुर रख रहे हैं, लेकिन अपने आसपास के नेताओं के साथ उनकी नाराजगी कांग्रेस के वोट बैंक को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है।
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Yashpal Sharma (Editor)