ई न्यूज़ पंजाब, लुधियाना भारतरत्न से सम्मानित भारत की -स्वर कोकिला- लता मंगेशकर को बचपन से ही गाने का शौक था और संगीत में उनकी बेहद दिलचस्पी थी। लता ने एक बार बातचीत में -बीबीसी- को बताया था कि जब वह चार-पांच साल की थीं तो किचन में खाना बनाती अपनी मां को स्टूल पर खड़े होकर गाने सुनाया करती थीं।तब तक उनके पिता को बेटी के गाने के शौक के बारे में पता नहीं था। लगभग छह दशक से अपनी जादुई आवाज के जरिए बीस से अधिक भाषाओं में पचास हजार से भी ज्यादा गीत गाकर -गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड- में नाम दर्ज करा चुकीं संगीत की देवी लता मंगेशकर आज भी श्रोताओं के दिल पर राज कर रही हैं । लता ही एकमात्र ऐसी जीवित व्यक्ति हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिए जाते हैं। 28 सितंबर को उनका 86वां जन्मदिन हैं। लता जी का जन्म 28 सितंबर, 1929 में एक मध्यम वर्गीय मराठा परिवार में हुआ। मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मीं लता पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बड़ी बेटी थीं। लता मंगेशकर का पहला नाम -हेमा- था, मगर जन्म के 5 साल बाद माता-पिता ने इनका नाम -लता- रख दिया था. लता अपने सभी भाई-बहनों में बड़ी हैं। मीना, आशा, उषा तथा हृदयनाथ उनसे छोटे हैं. उनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक थे। लता जी को पहली बार स्टेज पर गाने के लिए 25 रुपये मिले थे. इसे वह अपनी पहली कमाई मानती हैं. लताजी ने पहली बार 1942 में मराठी फिल्म -किती हसाल- के लिए गाना गाया. वर्ष 1949 में फिल्म महल के गाने -आएगा आने वाला- गाने के बाद लता बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गईं. इसके बाद राजकपूर की -बरसात- के गाने -जिया बेकरार है-, -हवा में उड़ता जाए- जैसे गीत गाने के बाद लता मंगेशकर बॉलीवुड में एक सफल पार्श्वगायिका के रूप में स्थापित हो गईं.लता मंगेशकर को उनके सिने करियर में चार बार फिल्म -फेयर पुरस्कार- से सम्मानित किया गया है. लता मंगेशकर को उनके गाए गीत के लिए वर्ष 1972 में फिल्म -परिचय-, वर्ष 1975 में -कोरा कागज- और वर्ष 1990 में फिल्म -लेकिन- के लिए नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा लता मंगेशकर को वर्ष 1969 में पद्मभूषण, वर्ष 1989 में -दादा साहब फाल्के सम्मान-, वर्ष 1999 में -पद्म विभूषण-, वर्ष 2001 में -भारत रत्न- जैसे कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं ।बचपन में कुंदनलाल सहगल की एक फिल्म चंडीदास देखकर वह कहती थीं कि वो बड़ी होकर सहगल से शादी करेंगी. वहीं बाद में उन्होंने शादी ही नहीं की. इस पर उनका कहना है कि घर के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी उन पर थी, ऐसे में जब शादी का ख्याल आता भी तो वह उस पर अमल नहीं कर सकती थीं। 1962 में जब लता 32 साल की थी तब उन्हें स्लो प्वॉइजन दिया गया था। लता की बेहद करीबी पदमा सचदेव ने इसका जिक्र अपनी किताब ‘ऐसा कहां से लाऊं’में किया है। जिसके बाद राइटर मजरूह सुल्तानपुरी कई दिनों तक उनके घर आकर पहले खुद खाना चखते, फिर लता को खाने देते थे। हालांकि उन्हें मारने की कोशिश किसने की, इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया। सुरीली आवाज और सादे व्यक्तित्व के लिए विश्व में पहचानी जाने वाली संगीत की देवी लता आज भी गीत रिकार्डिग के लिए स्टूडियो में प्रवेश करने से पहले चप्पल बाहर उतार कर अंदर जाती हैं।
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Yashpal Sharma (Editor)