भारतीय जनता पार्टी की ओर से लुधियाना में सांसद रवनीत सिंह बिट्टू को लोकसभा की टिकट दिए जाने के बाद बैंस ब्रदर्स की भी दिक्कतों को बढ़ा दिया है। बिट्टू की लोकसभा टिकट एलान होने के बाद बैंस ब्रदर्स का अब भाजपा के साथ समझौते की उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फिर गया है। अब उनकी अगली रणनीति क्या रहेगी, यह आने वाले दो-तीन दिन में साफ हो जाएगा। सूत्र बताते हैं कि बैंस ब्रदर्स की ओर से भारतीय जनता पार्टी से लुधियाना लोकसभा सीट के साथ-साथ 6 विधानसभा पर भी अपने उम्मीदवार उतरने की बातचीत चल रही थी, लेकिन सांसद बिट्टू के भाजपा में आने के बाद अब यह किताब पूरी तरह बंद हो चुकी है। ऐसे में अब पूर्व विधायक सिमरजीत सिंह बैंस को अपना राजनीतिक सफर आगे चलने के लिए कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी के साथ गठजोड़ करना पड़ सकता है। अगर इन दोनों पार्टियों में भी उनकी दाल नहीं गलती तो वह फिर से लोक इंसाफ पार्टी से सांसद चुनाव लड़ सकते हैं। एक बात साफ है कि इस बार उन्हें लोगों का वोट के तौर पर कितना प्यार मिलता है, ये उनके चुनावी भविष्य को भी तय करेगा।
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रेप केस ने बिगाड़ा बैंस ब्रदर्स का आसमान छूता ग्राफ
बड़ी बात है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में लुधियाना सीट पर ने सिमरजीत सिंह बैंस को लाखों की तादाद में वोट डालकर अपना बड़ा विश्वास उन पर जताया था और इसी कारण से लुधियाना लोकसभा सीट पर वे एक मजबूत उम्मीदवार माने जाते हैं। लेकिन पिछले करीब ढाई तीन साल का सफर उनके राजनीतिक जीवन काल के लिए इतना सुखद नहीं रहा है। सिमरजीत सिंह बैंस पर लगे रेप के आरोप और उसके बाद इस मामले में उनका जेल जाना, उनके राजनीतिक कैरियर पर बड़ा असर डाला है। इस असर का अंदाजा आप इस हिसाब से भी लगा सकते हैं कि बीते विधानसभा चुनाव में लिप पार्टी से चुनाव लड़े दोनों बैंस भाईयों की की अपने फेवरेट विधानसभा हल्कों में जमानत तक जब्त हो गई। इससे साफ बैंस ब्रदर्स के आसमान छूते ग्राफ को जमीन पर ला दिया।
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बड़ी बात है कि अभी तक लुधियाना में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की ओर से अपने अपने उम्मीदवार को चुनाव मैदान में नहीं उतर गया है। दोनों ही पार्टियां लुधियाना से किसे अपना उम्मीदवार बनाए इस शशोपन में फंसी हुई है। लुधियाना में कांग्रेस की बात करें तो लोकसभा चुनाव में पूर्व मंत्री भारत भूषण आशू के साथ-साथ नॉर्थ हल्के के पूर्व विधायक राकेश पांडे और लुधियाना पूर्वी से पूर्व विधायक संजय तलवाड़ इस दौड़ में शामिल है। वहीं आम आदमी पार्टी की बात करें तो वह भी लुधियाना सीट पर किसी हिंदू उम्मीदवार को उतारने की चाहवान है, लेकिन इसको तय करने में वे भी उलझी पड़ी हैं। फिलहाल आम आदमी पार्टी इस सीट पर जसबीर सिंह खंगूड़ा, अहबाब ग्रेवाल, विधायक गुरप्रीत गोगी सहित कुछ अन्य नामों पर विचार कर रही है। अब ऐसे में बैंस ब्रदर्स अपनी शर्तों पर खड़ रह किस ढंग से इन दोनों पार्टियों में जगह बना पाते हैं, यह उनके लिए आसान नहीं होगा। गौर हो कि आम आदमी पार्टी के पंजाब में शुरू किए अपने सफर में सिमरजीत सिंह बैंस व उनके भाई बलविंदर बैंस का सहयोग लिया था। लेकिन ये सहयोग अधिक देर नहीं चल पाया और दोनों ही पार्टियां अपने अपने राह पर चल पड़ी। इस राह में आम आदमी पार्टी के सितारे पंजाब में बुलंद हो गए और वे पंजाब में अपनी सरकार बना गई, लेकिन वहीं दूसरी ओर सिमरजीत सिंह बैंस के सितारे गर्दिश में चले गए और उन्हें रेप केस में लंबी देर जेल में रहना पड़ा।
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सिमरजीत सिंह बैंस के इसलिए चुनाव लड़ने का दावा मजबूत
असल में साल 2019 के लुधियाना लोकसभा सीट के चुनाव नतीजों ने सबको हैरत में डाल दिया था। तब सिमरजीत सिंह बैंस लुधियाना लोकसभा सीट पर करीब 3 लाख 7 हजार वोट ले जाने में कामयाब रहे थे और कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे रवनीत सिंह बिटटू से मात्र 76 हजार वोट से हारकर दूसरे नंबर पर आए थे। जबकि शिअद उम्मीदवार करीब 3 लाख वोट लेकर तीसरे नंबर पर आए थे। जबकि लुधियाना से आम आदमी पार्टी की ओर से खड़े किए गए प्रो. तेजपाल सिंह गिल मात्र 16 हजार वोट ही हासिल कर पाए थे। यही कारण है कि पांच साल पहले सिमरजीत सिंह बैंस व उनके भाई का आम जनता के बीच खूब परचम लहराया था, लेकिन इस बार माहौल व परिस्थितियां पहले से पूरी तरह भिन्न हैं। यही कारण है कि बैंस अब विभिन्न पार्टी के बीच पहले की तरह फेवरेट लीडर नहीं रह गए हैं। उन्हें दोबारा से पहले की तरह फेवरेट लीडर बनने को इस चुनाव में जुदाई प्रदर्शन करना होगा। अगर वे ऐसा नहीं कर पाते तो बैंस ब्रदर्स का चुनावी कैरियर पर ग्रहण लंबा खींच सकता हैं।
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Yashpal Sharma (Editor)