पंजाब सरकार की ओर से आज किए 39 आला अधिकारियों के तबादलों में लोकल गर्वमेंट पंजाब को भी गुरप्रीत सिंह खैरा के तौर पर नया डायरेक्टर मिल गया है। लोकल गर्वमेंट के नया डायरेक्टर मिलने के बाद अब लुधियाना में ओरीसन हास्पिटल की लाखों के लेनदेन से हुई गैर कानूनी कंपाउडिंग की फाइल भी सबके सामने आएगी। असल में लाखों रुपए के लेनदेन के बाद ही इस कंपाउडिंग को अंजाम दिया गया और निगम में तैनात नॉन टेक्नीकल एमटीपी संजय कंवर ने इसमें अहम भूमिका निभाई। संजय कंवर की अब मुश्किलें इसलिए भी बढ़ती दिख रही हैं, क्यों कि उन पर आशीर्वाद बनाए रखने वाले नगर निगम कमिश्नर संदीप रिषी का भी लुधियाना से तबादला कर दिया गया है। संदीप रिषी ऐसे नगर निगम कमिश्नर रहे जिनके कार्यकाल में जमकर अवैध निर्माण होते चले गए और मोटे लेनदेन को अंजाम देने के लिए नाजाजय बिल्डिंगों को गिराने की बजाय इनको सील करने व सील खोलने का खेल पूरे पंजाब में मशहूर हो गया। पंजाब में सबसे बड़ी नगर निगम होने के बावजूद संदीप रिषी की ओर से पंजाब सरकार से कभी पक्का म्यूनिसिपल टाउन प्लॉनर नहीं मांगा गया और सेटिंग के तहत बीएंडआर के दो एसई को ही बिल्डिंग ब्रांच में बतौर एमटीपी तैनात कर दिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि अफसरों की सेटिंग के खेल में धड़ल्ले से नाजायज बिल्डिंगें बनती चली जा रही है। यही कारण है कि न चाहते हुए भी संदीप रिषी का लुधियाना से तबादला कर दिया गया। संदीप रिषी की पहली पसंद अमृतसर डीसी लगना था, जो पूरी नहीं हुई और उन्हें अब संगरुर का डीसी लगा दिया गया है। बड़ी बात है कि ओरीसन हास्पिटल का पूरा मामला डायरेक्टर लोकल बॉडी की टेबल पर पहुंचा हुआ है, लेकिन डायरेक्टर का पद खाली पडे़ होने के चलते ये पूरा मामला दबता चला जा रहा था।
नक्शों को तोड़ मरोड़ कर लगा दिया गया गैर कानूनी कंपाउडिंग को अंजाम
असल में इस बिल्डिंग का पहला नक्शा जो निगम में दिया गया, उस नक्शे में अस्पताल की बेसमेंट में पार्किंग दिखाई गई थी। इस नक्शे के तहत अस्पताल को 50 से 60 फीसदी कवरेज मिल सकती थी। लेकिन बिल्डिंग बॉयलाज के इन नियमों को किनारे कर अस्पताल प्रबंधन इसकी बेसमेंट पार्किंग में मरीजों के बैड लगाकर इसे अस्पताल यूज में लाए हुआ था और वहीं इसके कवरेज भी 80 फीसदी से अधिक कर ली गई। इन कमियों को दबाने के लिए अस्पताल प्रबंधन की ओर से बाद में पीछे का प्लॉट खरीददकर इसका रिहायशी नक्शा पास करवा इसे पहले नक्शे से जोड़ दिया। ऐसा करने से अस्पताल का कवरेज एरिया कम हो गया, लेकिन इस पूरे दांवपेच में अब ये अडंगा बन गया कि दो प्लॉट को जोड़ने से इसका साइज एक हजार गज एरिया को पार कर गया। ऐसे में अब इस नक्शे को पास करने में इस अस्पताल के सामने की सड़क का 60 फुट का होना जरुरी है, जो मौके पर 30 फुट के आसपास था। ऐसे में बिल्डिंग बॉयलाज की इस बड़ी शर्त के चलते इसकी कंपाउडिंग संभव नहीं थी। इसके बाद एक तीसरा अन्य नक्शा इसमें जोड़ा गया, जिसमें इस अस्पताल की एक साइड की 20-22 फुटी गली में स्थित एक प्लाट को पार्किंग यूज के तौर पर दिखा दिया गया। इस कंपाउडिंग से ऐसे लगने लगा है कि शायद नगर निगम की बिल्डिंग ब्रांच ने शायद अपना नया म्यूनिसिपल बिल्डिंग एक्ट बना लिया है और मोटे लेनदेन से स्वंयभू एक्ट का फार्मूला फिट कर दिया जाता है।
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Yashpal Sharma (Editor)