यशपाल शर्मा, लुधियाना
लुधियाना के नामी व सबसे पुराना मेडिकल कालेज कहे जाने वाले सिविल लाइंस स्थित दयानंद मेडिकल कालेज के पास एयर, वॉटर, बायो मेडिकल वेस्ट सहित अन्य तरह की कंसेंट है, इसकी जानकारी पीपीसीबी के संबंधित रीजन के एसडीओ से लेकर बोर्ड के आला कहे जाने वाले चेयरमैन तक के पास नहीं हैं। ई न्यूज पंजाब की ओर से इस पूरे मामले की गहराई तक पहुंच जब सच जानने की कोशिश करने को बोर्ड के एसडीओ से लेकर चेयरमेन तक को मोबाइल फोन के जरिए संपर्क साधे गए, लेकिन किसी भी अफसर ने ये साफ नहीं किया कि उक्त मेडिकल कालेज के पास कंसेंट है या नहीं। बड़ी बात है कि दयानंद मेडिकल कालेज लुधियाना का सबसे बड़ा मेडिकल कालेज है, लेकिन इसके बावजूद पीपीसीबी के पास मोटा मोटा ये साफ नहीं है कि इनके पास कंसेंट है या नहीं। यहां तक की इस संबंधी बोर्ड सख्त कार्रवाई करे, इसके लिए विज्ञान, तकनीकी एवं पर्यावरण सेक्रेटरी प्रियंक भारती तक से संपर्क साधा गया और उन्हें भी इस बारे में जानकारी दी गई। जिस पर उन्होंने कहा कि वे इस संंबंधी बोर्ड अफसरों से पूछेंगे कि इस मामले में सच क्या है।
जानें इस बारे में आज किस अफसर ने क्या कहा।
एसडीओ भीष्म- मैने अभी तक दयानंद मेडिकल कालेज विजिट नहीं किया और इनके पास कंसेंट है या नहीं, ऐसे मुझे जानकारी नहीं है। सोमवार को फाइल देख आपको बता सकता हूं।
एसई कुलदीप सिंह- डीएमसी मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल के पास जून 2025 तक की कंसेंट है, लेकिन दयानंद मेडिकल कालेज के पास है या नहीं ये मैं आपको कल साफ कर दूंगा।
चीफ इंजीनियर राज रत्तड़ा- इस बारे में संबंधित एक्सईन व एसडीओ से पूछा गया है और अगर एक दो दिन में जबाव नहीं आता तो इन्हें नोटिस जारी किया जाएगा। उक्त मेडिकल कालेज के पास कंसेंट है या नहीं और इस बिल्डिंग के निर्माण में इंवायरमेंट क्लीयरेंस की उल्लंघना तो नहीं, ये भी पूछा जाएगा।
बोर्ड चेयरमैन डा.आदर्श पाल विज- इस बारे में आपसे जो पता चला, उस संबंधी चीफ इंजीनियर से पूछकर जानकारी दे पाउंगा। अगर उक्त कालेज के पास कोई कंसेंट नहीं है तो इस बारे भी जबाव तलबी की जाएगी।
जानें क्या है पूरा मामला
दयानंद मेडिकल कालेज पंजाब पाॅल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से एयर वॉटर की कंसेंट लिए बिना सालों से चल रहा है, वहीं इसके पास कईं अन्य अहम कंसेंट भी बोर्ड से हासिल नहीं हैं। उक्त कालेज ने पीपीसीबी से कभी बायो मेडिकल वेस्ट और खतरनाक वेस्ट (Hazardous Waste)तक की कंसेंट के लिए अप्लाई नहीं किया, जो बेहद अनिवार्य है। बड़ी बात है कि दयानंद मेडिकल कालेज के स्टड़ी सिलेबस में मानव और जानवरों की डेडबाड़ी चीर फाड़ का अहम हिस्सा रहता है और इन क्लासिस में ही मेडिकल स्टूडेंटस के समक्ष डेड़बाड़ी को टेबल पर रख अहम जानकारी व प्रयोग के लिए कईं पार्टस को निकाला जाता है। लेकिन इसके बाद बची डेडबाड़ी को मेडिकल कालेज में कहां रखा जाता है, ये अपने आप में सवाल है। इसके साथ साथ उक्त मेडिकल कालेज से निकलने वाली खतरनाक वेस्ट की कंसेंट तक हास्पिटल के पास नहीं है। इसका मतलब मेडिकल कालेज की ओर से धड़ल्ले से नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। बड़ी बात है कि लुधियाना में कईं छोटी बड़ी इंडस्ट्री ऐसी हैं, जिन्हें पीपीसीबी से ये कंसेंट न मिलने के चलते बड़ी परेशानी झेलनी पड़ती हैं और कंसेंट हासिल करने के लिए भी कईं अफसरों की जेबें गर्म करनी पड़ती हैं। इतना ही नहीं वॉटर, एयर, मेडिकल व खतरनाक वेस्ट की सांभ संभाल में कोताही बरतने पर बोर्ड की ओर से कईं इंडस्ट्री की कंसेंट रोटीन में कैंसिल की जाती है और दोबारा से सुनवाई के जरिए ये कंसेंट बहाल करवाने में लाखों रुपए रिश्वत के तौर पर कारोबारियों को बहाना पड़ता है। यहां तक की यहां की किचन से भी निकलने वाले म्यूनिसिपल वेस्ट को रखने में भी नियमों की पालना अनिवार्य है, जो यहां पर नहीं की जाती। इस कालेज में कई सौ किलोवाट की क्षमता वाले जनरेटर भी लगे हुए हैं, लेकिन इनकी सर्विस दौरान बदले जाने वाले तेल को कैसे रखा जाता है, इसके लिए भी कोई बुक यहां मेनटेन नहीं की जाती। जबकि ये बोर्ड की 5.1 कैटेगिरी में आता है।
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Yashpal Sharma (Editor)