पिछले तीन वर्षों और चालू वर्ष के दौरान भ्रामक विज्ञापनों सहित विज्ञापन संहिता के उल्लंघन से संबंधित 1246 शिकायतें प्राप्त हुईं और इन शिकायतों का तीन-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र के अनुसार उचित तरीके से समाधान किया गया है।
यह बात केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा के चल रहे शीतकालीन सत्र में सांसद (राज्यसभा) संजीव अरोड़ा द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में कही। अरोड़ा ने अंधविश्वासी उत्पादों को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनों को रोकने के उपायों के बारे में प्रश्न पूछा था।
गुरुवार को यहां एक बयान में अरोड़ा ने कहा कि उनके प्रश्न के उत्तर में मंत्री ने आगे उल्लेख किया कि निजी टीवी चैनलों पर प्रसारित सभी विज्ञापनों को केबल टेलीविजन नेटवर्कस (रेगुलेशन) एक्ट, 1995 और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत निर्धारित विज्ञापन संहिता का पालन करना आवश्यक है।
मंत्री ने आगे बताया कि सरकार समय-समय पर निजी टीवी चैनलों को विज्ञापन संहिता का पालन करने के लिए परामर्श जारी करती है। पिछले तीन वर्षों और चालू वर्ष के दौरान, विज्ञापन संहिता के पालन के लिए 6 एडवाइजरी जारी की गई हैं। विज्ञापन संहिता का उल्लंघन पाए जाने पर उचित कार्रवाई की जाती है, जिसके लिए परामर्श, चेतावनी, माफी आदेश और ऑफ-एयर आदेश आदि जारी किए जाते हैं। इसके अलावा, मंत्री ने अपने उत्तर में उल्लेख किया कि प्रिंट मीडिया में विज्ञापन प्रेस कौंसिल एक्ट, 1978 के तहत प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा जारी 'पत्रकारिता आचरण के मानदंड' द्वारा शासित होते हैं।
मंत्री ने आगे बताया कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) ने गाइडलाइन्स फॉर प्रिवेंशन ऑफ मिसलीडिंग एडवर्टाइज़मेंटस एंड इंडोर्समेंटस फॉर मिसलीडिंग एडवर्टाइज़मेंट, 2022 जारी की हैं, जो अन्य बातों के साथ-साथ मैन्युफैक्चरर, सर्विस प्रोवाइडर, एडवरटाइजर और एडवरटाइजिंग एजेंसी के कर्तव्यों सहित विज्ञापन के संबंध में पालन की जाने वाली शर्तें निर्धारित करती हैं।
अरोड़ा ने पूछा था कि पिछले तीन वर्षों में अंधविश्वासी उत्पादों या सेवाओं को बढ़ावा देने वाले कितने विज्ञापनों की पहचान की गई, उनकी जांच की गई और उन्हें दंडित किया गया। उन्होंने ऐसे उत्पादों या सेवाओं के विज्ञापन को रोकने के लिए मौजूद उपायों के बारे में भी पूछा था जो लोगों के अंधविश्वासों का फायदा उठाते हैं या जादूगरी के माध्यम से अप्रमाणित लाभ का दावा करते हैं। इसके अलावा, उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार भ्रामक विज्ञापनों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने और ऐसी प्रथाओं की पहचान करने के लिए नागरिकों को शिक्षित करने के लिए कदम उठाने की योजना बना रही है।
इस बीच, अरोड़ा ने कहा, "मीडिया में अंधविश्वासी उत्पादों को बढ़ावा देने वाले विज्ञापन भय और अंधविश्वास पैदा करते हैं, जो अक्सर वास्तविक समाधान के बजाय झूठी उम्मीदें पेश करते हैं। इससे न केवल कमजोर लोगों का शोषण होता है, बल्कि तथ्यों पर मिथकों को बढ़ावा देकर सामाजिक प्रगति में बाधा भी पड़ती हैं। ज़िम्मेदार व्यक्तियों के रूप में, हमें जागरूकता और वैज्ञानिक तर्क की संस्कृति को बढ़ावा देते हुए निराधार दावों पर सवाल उठाना, उन्हें सत्यापित करना और उन्हें अस्वीकार करना चाहिए। आइए हम अज्ञानता के बजाय ज्ञान को चुनें और सुनिश्चित करें कि मीडिया सच्चाई का मंच बने, न कि छल का बाज़ार।"
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Yashpal Sharma (Editor)