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केदारनाथ के रावल महाराष्ट्र में फंसे हैं, सड़क मार्ग से उत्तराखंड जाने को प्रधानमंत्री को लिखी चिट्‌ठी

बाबा केदारनाथ का स्वर्ण मुकुट उन्हीं के पास, कपाट खुलते वक्त उनका रहना जरूरी

29 अप्रैल को सुबह 6 बजे केदारनाथ के कपाट खुलने हैं।

Apr16,2020 | Enews Team | Uttrakhand

 केदारनाथ मंदिर के मुख्य रावल महाराष्ट्र के नांदेड में फंसे हुए हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कपाट खुलने से पहले केदारनाथ पहुंचने की अनुमति मांगी है। रावल भीमाशंकर ने इसके लिए प्रधानमंत्री को चिट्‌ठी लिखी है। उन्होंने सड़क मार्ग से उत्तराखंड जाने की इजाजत मांगी है। हालांकि, उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। इस बीच, उत्तराखंड सरकार उन्हें एयरलिफ्ट करने पर विचार कर रही है। उनके साथ मंदिर ट्रस्ट के चार और लोग भी हैं। केदारनाथ को पहनाया जाने वाला सोने का मुकुट भी उन्हीं के पास है। लॉकडाउन के चलते टिहरी राजघराने के सदस्यों का पहुंचना भी मुश्किल हो रहा है, परंपरा के मुताबिक कपाट खुलते वक्त उनका होना भी जरूरी है। मंदिर के नजदीक 7 फीट गहराई तक बर्फ जमी है। किसी भी तरह की मशीनें यहां आ नहीं सकतीं, इसलिए गेंती-फावड़े से ही धीरे-धीरे बर्फ हटाई जा रही है।  29 अप्रैल को सुबह 6 बजे से केदारनाथ के कपाट खुलने हैं, जबकि इससे पहले 26 अप्रैल को यमनोत्री गंगोत्री के कपाट खुलेंगे। हालांकि, सरकार ने इस बार चारधाम मंदिरों के दर्शन ऑनलाइन करवाने का फैसला लिया है। इस पर स्थानीय लोगों और पुजारियों ने आपत्ति जताई है।केदारनाथ के रावल (गुरु) महाराष्ट्र या कर्नाटक और बद्रीनाथ के केरल से होते हैं। ये लोग यहीं से हर साल यात्रा के लिए आते हैं। परंपरा के मुताबिक, केदारनाथ के रावल खुद पूजा नहीं करते, लेकिन इन्हीं के निर्देश पर पुजारी मंदिर में पूजा करते हैं। वहीं, बद्रीनाथ के रावल के अलावा कोई और बद्रीनाथ की मूर्ति नहीं छू सकता। आदि शंकराचार्य के वक्त से चली आ रही परंपरा के मुताबिक, कपाट खुलते वक्त रावल का वहां मौजूद रहना जरूरी है। केदारनाथ का स्वर्ण मुकुट इनके पास ही रहता है और पारंपरिक कार्यक्रमों में ये उसे पहनते भी हैं, जिसे कपाट खुलने पर केदारनाथ को पहनाया जाता है। टिहरी दरबार नरेंद्र नगर में ही टिहरी महाराज की जन्म कुंडली देखकर मंदिर के कपाट खुलने की तारीख तय होती है। टिहरी राजघराने के लोग, जिन्हें बोलंदा बद्री भी कहते हैं, उनका बद्रीनाथ के कपाट खुलने के वक्त मंदिर में रहना जरूरी है और उनके राज पुरोहित ही पूजा करते हैं। बद्रीनाथ की गारू घड़ा की परंपरा भी राज परिवार की महारानी और महिलाएं पूरी करती हैं।

Kedarnath Opening Process Start




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