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इंडस्ट्रियल डिस्चार्ज की आनलाइन मानिटरिंग को लगाए जाने वाले मीटरों पर उठने लगे सवाल, खानापूर्ति या सुधरेगा सिस्टम

Nov29,2019 | Yashpal sharma | ludhiana

यशपाल शर्मा, लुधियाना अब पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की ओर से शहर के ऐसे कारोबारी जिनकी इंडस्ट्री से 50 हजार लीटर का रोजाना का डिस्चार्ज है, को अब अपने डिस्चार्ज के पैरामीटर नापने को आनलाइन मानिटरिंग को मीटर लगाना तो जरुरी कर दिया है, लेकिन अब इस प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े होने शुरु हो गए हैं। ये मीटर उन इंडस्ट्री को लगाने की जरुरत नहीं, जो शहर में लगाए जा रहे तीन सीईटीपी के मैंबर हैं। पीपीसीबी के इस फरमान के बाद अब ऐसी लार्ज इंडस्ट्री जिनकी ओर से अगले तीन चार महीने में खुद के यूनिट को जीरो लिक्विड डिस्चार्ज करने की तैयारी की जा रही है, उन्हें भी बोर्ड इस मीटर के लिए लगातार दबाव बना रहा है। इस मीटर की कीमत 6 से 8 लाख रुपए हैं और ऐसे में उक्त लार्ज यूनिट जब अगले तीन चार महीने बाद डिस्चार्ज को जीरो कर लेंगे तो वे मीटर उनके लिए कबाड़ बनकर रह जाएगा। वहीं इस मीटर पर बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि क्या बोर्ड मीटर लगने के बाद इन इंडस्ट्री से सैंपल नहीं लेगा। वहीं अगर सैंपल लेता है तो अगर आनलाइन मीटर के पैरामीटर और सैंपल के पैरामीटर में फर्क आता है, तो इसका समाधान कैसे करेगा। वहीं अगर इन मीटरों में भी अपनी जरुरत मुताबिक फेरबदल किया जा सकता है तो ऐसे मीटरों को लगाने की जरुरत क्या है। इससे एक बात साफ है कि बोर्ड अधिकारी केवल अपनी खाल बचाने को या खानापूर्ति करने को ये मीटर लगाने का दबाव बना रही है। इतना हीं नहीं जिन्होंने मीटर नहीं लगाए अब तो बोर्ड ने उन्हें लाखों रुपए जुर्मानें भी ठोकने शुरु कर दिए हैं। अगर सैंपलिंग में आप उतर रहे पूरे, तो पीपीसीबी नहीं बना सकता दबाव अगर आपकी इंडस्ट्री के ईटीपी से एनजीटी या पीपीसीबी की टीम सैंपल लेकर जाती है और आपका सैंपल पास होता है तो बोर्ड आफिसर आप इस तरह का कोई दबाव नहीं बना सकते कि आप किसी सीईटीपी के मैंबर बने, ये बात एनजीटी की ओर से गठित कमेटी के चेयरमैन जस्टिस जसबीर सिंह ने बीते दिनों लुधियाना की आधा दर्जन डाइंग इंडस्ट्री की सैंपलिंग दौरान पीपीसीबी अफसरों को कही है। यूपी सहित कईं अन्य राज्यों में कामयाब नहीं ये मीटर बात करें इंडस्ट्रियल डिस्चार्ज पर लगने वाले मानिटरिंग मीटर की तो ये भले ही पंजाब की इंडस्ट्री के लिए नई बात है, लेकिन यूपी, गुजरात सहित कईं राज्यों में इस मीटर का फंड पिछले करीब दो तीन साल से चल रहा है। लेकिन वहां भी ये मीटर प्रदूषण रोकने में अधिक सहायक सिद्ध नहीं हो पाया है। असल में इन मीटरों के जरिए केवल सीओडी का फैक्टर लिया जाता है और इससे ही बीओडी व भी डिस्चार्ज में बीओडी, सीओडी व पीएफ के फैक्टर को बदला जा सकता है। ये मीटरिंग सिस्टम तभी कामयाब हो सकता है, जब ये मीटर बिजली बोर्ड के मीटरों की तरह पूरी तरह से सील किया गया हो। ऐसे में अगर इस मीटर से छेड़छाड़ होगी तो उक्त इंडस्ट्री पर बड़ी कार्रवाई का प्रावधान ही इस सिस्टम में सुधार ला पाएगा। ------ इलेक्ट्रोड वाले मीटर में बदलाव संभव हैं और यही विवाद अब यूपी व अन्य राज्यों में चल रहा है। अब तो सीपीसीबी व अन्य बोर्ड की ओर से गलत फैक्टर दिखाए जाने के चलते वैंडर पर भी जुर्माना लगाया जा रहा है। इससे भी इंडस्ट्री की मुशिकलें कम होने वाली नहीं हैं। मीटर लगने के बाद भी इंडस्ट्री को बोर्ड और वैंडर का ब्लैकमेल झेलना पड़ेगा। टेकन छाबड़ा, एक्सपर्ट दिल्ली (गंगा प्राेजेक्ट पर काम कर रहे है) केवल ऐसी लार्ज इंडस्ट्री जिसकी ओर से जैडएलडी के लिए मंजूरी ली हुई है, उसे ही मीटर न लगाने से रियायत है। बाकी सभी इंडस्ट्री जिनका रोजाना डिस्चार्ज 50 हजार लीटर से ज्यादा है और वे किसी सीईटीपी का मेंबर नहीं है, को मीटर लगाना अनिवार्य है। मीटर लगे होने के बावजूद साल में एक या दो बार इंडस्ट्री की सैंपलिंग बोर्ड की ओर से की जाएगी और सैंपलिंग रिपोर्ट के आधार पर अगली कार्रवाई की जाएगी। करुणेश गर्ग, मेंबर सेक्रेटरी पीपीसीबी

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