शहर की 9 पार्किंग साइट के लिए निगम अफसरों ने करोड़ों के घोटाले का ऐसा चक्रव्यूह रचा गया है कि इन पार्किंग साइट की नीलामी का काम 20 अक्टूबर को पूरा हो चुका है, लेकिन इस नीलामी को सिरे चढ़ाने वाले अफसर ही कुछ बोलने को तैयार नहीं है। इससे साफ है कि अगर ये बोली पारदर्शी ढंग से करवाई गई हैं तो अफसर इस पर कुछ भी बोलने को तैयार क्यों नही हैं। अब केवल इतनी बात कही जा रही है कि फाइल अप्रूवल को कमिश्नर आफिस भेजी गई है। इसका मतलब ये है कि अब इन पार्किंग साइट की गेंद निगम कमिश्नर शैना अग्रवाल के पाले में है और उनकी ओर से इस ई आक्शन की बिड को मंजूरी देकर कंपनी का नाम फाइनल किया जाना है। ये नगर निगम कमिश्नर के अधिकार में है कि अगर इस बोली में रिजर्व रेट से अधिक बढ़ोतरी नहीं हुई है तो वे ये नीलामी को रदद भी कर सकती हैं। सवाल ये भी है कि चंडीगढ़ में दो दशक से पहले पार्किंग साइट प्राइवेट हाथों में दी जाती है, लेकिन वहां पर पार्किंग रेट फिक्स रहते हैं और पब्लिक पर पार्किंग खर्च भी सामान्य रहता है। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि जहां साल 2012 में लुधियाना नगर निगम हर महीने पास के तौर पर साइकिल स्कूटर का 150 रुपए व कार का 200 रुपए लेती थी, वे इस बार चार गुना बढ़ाकर 700 व 1500 रुपए तय किया गया है। लेकिन इस पूरी बोली के पीछे एक विधायक का दबाव भी है तो ऐसे में कमिश्नर क्या फैसला लेती है, ये एक दो दिन में साफ हो जाएगा। सूत्रों की ओर से बताया जा रहा है कि अफसरों की ओर से बिड वाइस पहली, दूसरी व तीसरी कंपनी फाइनल कर ली है। नगर निगम की बजाय ठेकेदार को फायदे पहुंचाने का चक्रव्यहू ई न्यूज पंजाब पहले से ये दावा कर चुका हैं कि इस ई ऑक्शन में करोड़ों के घोटाले का चक्रव्यूह रचा गया है और और इससे सीधी सीधी चपत नगर निगम के रेवेन्यू पर पड़ती दिखाई दे रही है। इस घोटाले से मतलब निगम रेवेन्यू को चपत से है। इस घोटाले का पूरा अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस टेंडर की शर्तों मुताबिक आम जनता पर पार्किंग खर्च का बोझ दो गुना से तीन गुना तक बढ़ा दिया गया है लेकिन इसका बड़ा फायदा नगर निगम की बजाय ठेकेदार को मिलने की बातें मार्केंट में पहले से चल रही है। अगर इस नीलामी में निगम की आमदन में रिजर्व रेट से 40 से 50 फीसदी का फायदा आता है तो ये पार्किंग का ठेका किसे भी दिया जा सकता है, लेकिन अगर ये रेवेन्यू में मात्र 10 से 20 फीसदी से भी कम रहता है तो ये सीधे सीधे घोटाला ही कहा जाएगा। हालांकि ये चक्रव्यू सिरे चढ़ने से पहले ही विवादों में तो आ गया है, लेकिन इस विवाद में फिलहाल इस टेंडर प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करने वाले अधिकारियों पर उंगलियां उठ रही हैं। इस टेंडर के चलते नगर निगम अफसरों ने बीती 12 सितंबर को टर्म एंड कंडीशन फाइनल कर दी थी। निगम की ओर से अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में इस ऑक्शन में हिस्सा लेने वाले कॉन्ट्रैक्टरो को टेंडर टर्म एंड कंडीशन जारी कर टेंडर फॉर्म जारी कर दिया था और ठेकेदारों की ओर से अपने टेंडर फॉर्म नगर निगम में सबमिट कर दिए गए। लेकिन 15 अक्टूबर को नगर निगम की ओर से एक कॉरिजेंडम जारी कर यह साफ किया गया कि इस टेंडर में केवल वही कंपनी हिस्सा ले सकती हैं जिनके पास पार्किंग का 1 साल का अनुभव है। ठेकेदारों से टेंडर फॉर्म लेने के बाद नगर निगम की ओर से लगाई गई यह शर्त सवालों के घेरे में आ गई है और इस शर्त के खिलाफ कुछ ठेकेदार इस बोली से बाहर कर दिए गए हैं। इतना ही नहीं इस शर्त को लेकर निगम के खिलाफ द्रविड़ सिक्योरिटी नाम की कंपनी कोर्ट में भी चली गई है और कोर्ट की ओर से नगर निगम कमिश्नर व तहबाजारी ब्रांच के अफसरों को भी नोटिस जारी हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद यह टेंडर प्रक्रिया का सिलसिला जारी है।
Suspense Continues On Online Bidding Of Parking Site